बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- बौद्ध काल की चित्रकला का परिचय दीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. तारानाथ कौन थे?
2. गांधार शैली में बौद्ध की छवि का प्रचलन कब प्रारम्भ हुआ?
उत्तर-
ईसवी शताब्दी के प्रारम्भ के साथ 'प्राचीनकाल' की भारतीय कला के इतिहास में स्वर्ण युग आरम्भ होता दिखाई पड़ता है, इस समय बौद्ध धर्म भी अपना प्रभाव स्थापित कर रहा था, और जनता भी बौद्ध धर्म को ग्रहण कर रही थी, बौद्ध धर्म की यह उन्नति औरव्यापकता सातवीं ईसवी शताब्दी तक अच्छे से चलती रही। इस समय तक ब्राह्मण धर्म पुनः उन्नति को प्राप्त नहीं कर पाया था, और इस समय भारत पूर्व देशों में एक समृद्धशाली देश था, और भारत की ज्ञान तथा विज्ञान की ज्योति पूरे एशिया को प्रकशित कर रही थी। पूरे एशिया देश धार्मिक प्रेरणा और ज्ञान प्राप्ति के लिए बौद्ध भारत की ओर दृष्टि लगाए हुए थे। इस समय पूरे भारतवर्ष में पवित्र तीर्थ कौशल के दर्शन हेतु दूर-दूर से बड़ी संख्या में पर्यटक आते थे, और भगवा बुद्ध के उपदेश समस्त पूर्वी देशों में अपनाए जा रहे थे। इस समय समय की चित्रकला का ज्ञान तथा दर्शन बहुत ही गहराई से दिखाया पड़ता है। बौद्ध धर्म का पूर्वी देशों जैसे श्रीलंका, नेपाल, जावा, श्यामा, ब्रह्मा, तिब्बत, जापान और चीन की कला पर बहुत अधिक रूप से प्रभाव पड़ा है। इन सब देशों की चित्रकला, मूर्तिकला एवं वास्तुकला के अवशेष इस बात का प्रमाण देते हैं।
तारानाथ सोलवीं शताब्दी को तिब्बत इतिहासकार था। तारानाथ ने उल्लेख किया हैं कि जहाँ जहाँ बौद्ध धर्म फैला था, वहाँ वहाँ दक्ष चित्रकार पाए गए हैं, यह बात विशेष रूप से भारतवर्ष की चित्रकला में देखी जा सकती है। बहुत सुन्दर कलाकृतियाँ काल के गाल में समा गई हैं, इसका मतलब है बहुत चित्रकला ऐसी हैं जो अब नष्ट हो चुकी हैं, फिर भी बौद्ध, भगवत तथा शैल कलाकारों की कुछ समुचित कृतियाँ, कलाकारों की निपुणता तथा कारीगरी की दक्षता की गाथा को छुपाए आज भी अच्छी अवस्था में प्राप्त है, जो कि अभी तक सही सलामत रखी हुई है। इन्ही कलादक्ष शिल्पियों ने चित्रकला की एक विशेष शैली स्थापित की है। बौद्ध धर्म की कला शैली का विकास बहुत ही स्वाभाविक ढंग से हुआ था। बौद्ध धर्म विशेष रूप से चित्रात्मक ही है।
लगभग 200 ई०पू० आरम्भिक समय में बौद्ध धर्म के अन्तर्गत महात्मा बुद्ध की छवियों या मूर्तियों का निर्माण नहीं किया गया। धर्म प्रचार या बुद्ध के अस्तित्व को दर्शित करने के लिए उनके प्रतीक के रूप में छात्र, मुकुट, पगड़ी, चरण पादुका, बौद्ध वृक्ष, धर्मचक्र या सिंहासन आदि के अंकन की प्रथा प्रचलित हो गई थी, परन्तु बौद्ध की छवि अंकित नहीं की गई थी।
बौद्ध चित्रकला कहाँ कहाँ दिखाई पड़ी है, इसका वर्णन निम्नलिखित है-
गांधार शैली
अजन्ता शैली
बाघ गुफाएँ
बादामी गुफाएँ
सित्तननवासल की गुफा
सिगिरिया की गुफाएँ
गांधार शैली में बौद्ध की छवि का प्रचलन
कुषाण राज्य में कनिष्क के सम्राट बनते ही महायान (विकासवादी पंथ) बौद्ध धर्म का प्रारम्भ हुआ। इसके कारण भगवान बुद्ध की छवियाँ, मूर्तियाँ तथा चित्र के रूप में अंकित की जाने लगी, और बुद्ध के अंकन पर कोई धार्मिक प्रतिबन्ध नहीं रहा। कनिष्क काल में ही बुद्ध की मूर्तियाँ बनवाई गई थी। इस प्रकार की मूर्तियाँ पेशावर, रावलपिण्डी, तक्षशिला आदि क्षेत्रों में बनाई गई और यह सारे क्षेत्र गांधार राज्य की सीमा के अन्तर्गत ही आते थे, इसलिए इस शैली को गांधार की शैली के नाम से पुकारा गया है। इन मूर्तियों का विषय भारतीय बौद्ध है लेकिन शैली पर यूनानी तथा रोमन छाप है। इन कलाकारों ने बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित कथा तथा जातक कथा पर कलाकारों ने बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित कथा तथा जातक कथा पर आधारित ही मूर्तियाँ बनाई थीं, और इन मूर्तियों में बुद्ध की मुद्राएँ भारतीय हैं, जैसे- अभय मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, ध्यान मुद्रा या धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा आदि। परन्तु इन मूर्तियों में वस्त्र, वेशभूषा तथा अलंकरण विदेशी हैं। बुद्ध ने तपस्या से पहले अपने बाल काट दिए थे परन्तु गांधार शैली के विदेशी कलाकारों की 'तपस्या में लीन बुद्ध की प्रतिमा' में घुंघराले बाल दिखाई देते हैं। इस शैली का प्रसार मध्य एशिया तक हुआ था।
अजन्ता की गुफाओं में बौद्ध की कला का प्रचलन
अजन्ता महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है। अजन्ता की प्रत्येक गुफा में मूर्तियों, स्तम्भ तथा द्वार काटकर भित्तियाँ (दीवारों) पर चित्रकारी की गई है। अजन्ता की गुफाएँ वास्तुकला, मूर्तिकला तथा चित्रकला का बहुत अच्छा संगम है। अजन्ता के अधिकतर चित्रों का विषय बौद्ध धर्म से ही सम्बन्धित है। इन चित्रों में बुद्ध के विभिन्न चित्र और पवित्र धर्म चिह्न सम्मिलित है। इसके साथ ही बुद्ध की जन्म-जन्मान्तर की जीवन कथाएँ तथा जातक कथाएँ इन गुफाओं की चित्रकारी का प्रमुख विषय है। जातक कथाओं के अन्तर्गत बुद्ध के अनेकों पूर्व जन्मों की कथाएँ हैं, जिनका चित्रकार ने बहुत सुन्दरता से अंकन किया है। ये जातक कथाओं के ही चित्र हैं। इस बात को दो आधार पर जाना जा सकता है, पहला- इन चित्रों पर जातक कथा का नाम लिखा है, परन्तु चित्रों के नष्ट हो जाने से चित्र को पहचानने में असुविधा होती है, और दूसरा - दसवीं गुफा में षड़दन्त हाथी की जातक कथा तथा अन्य जातक कथाओं को उनके घटनाक्रम के अनुसार अंकन एवं उनकी विशेषताओं के कारण पहचाना जा सकता है। अजन्ता की गुफा में बुद्ध जन्म के चित्रों को भी दर्शाया गया है।
बाघ गुफाएँ
बाघ गुफाएँ प्राचीन ग्वालियर रियासत में विन्ध्याचल पर्वत श्रेणी में स्थित थी, परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्त होने के पश्चात् ये गुफाएँ मध्य प्रदेश के अन्तर्गत आ गई हैं। वहाँ के लोग इन गुफाओं को पंच पांडव नाम से भी पुकारते हैं। बाद्य गुफाओं में बुद्ध के चित्र भी अंकित हैं, इनमें दिखाई पड़ता है कि 4 हाथी और 3 घुड़सवार अन्य स्थान तर्क आ गए हैं, हाथी विश्राम करने के लिए बैठ गए हैं, यहाँ पर 2 पैदल आदमी हैं जिनके हाथ में तलवार है। इन सबका ध्यान सामने के भवन पर केन्द्रित है। पास में आम के वृक्ष से नीला कपड़ा लटका है और नीचे जल पात्र तथा धर्म चक्र दर्शाए गए हैं। इसके निकट एक केले का वृक्ष भी है, जिसके नीचे बुद्ध बैठे हुए हैं, और एक शिष्य को उपदेश देते हुए अंकित है। छठी गुफा में गौतम बुद्ध के अनेकों चित्र हैं, जिनमें 'बुद्ध' का सुन्दर चित्र अवशेष मात्र रह गया है।
बादामी की गुफाएँ
बादामी की गुफाएँ बीजापुर जिले के अन्तर्गत आईहोल के निकट कर्नाटक प्रान्त में स्थित है। बादामी के चार गुफा मन्दिरों में शिल्प तथा चित्रकला के उत्तम उदाहरण सुरक्षित हैं। बादामी की गुफाओं में भी कई जगह बौद्ध के चित्र अंकन हैं।
सित्तननवासल की गुफा
सित्तननवासल की गुफा दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के अन्तर्गत तन्जौर के निकट पट्टुकोट्टाइ में स्थित है। सित्तननवासल गुफा जैन मन्दिर है। यह मन्दिर एक चट्टान को काटकर बनाया गया है। पहले इस गुफा मन्दिर में बहुत से चित्र अलंकृत थे, परन्तु अब चित्र केवल छत में तथा स्तम्भों के ऊपरी भागों में शेष रह गए हैं। सित्तननवासल के चित्रों की शैली अजन्ता के समान ही है। यहाँ पर एक सरोवर का दृश्य है, जिसमें कमल पुष्प खिले हैं। इस सरोवर के बीच में एक मछली, हाथी, हंस तथा 3 दिव्य व्यक्ति की आकृतियाँ चित्रित हैं, और यह तीनों हाथों में कमल धारण किए हैं।
सिगिरिया की गुफाएँ
भारतीय बौद्ध भिक्षु धर्म के प्रचार के लिए सुदुर पूर्वी तथा दक्षिणी देशों की ओर गए, और उनके साथ ही भारतीय चित्रकारी, धर्म तथा दर्शन आदि भी उन देशों में पहुँचा। श्रीलंका में भी इसी प्रकार भारत की अजन्ता शैली की चित्रकला इन्हीं धर्म प्रचारकों के साथ पहुँची। श्रीलंका में सिगिरिया नामक गुफा में अजन्ता की चित्र शैली के दर्शन होते हैं, इसी प्रकार यहाँ पर बौद्ध के चित्र भी अंकित हैं।
बौद्ध काल की चित्रकला के अन्य प्रमाण गुप्त राजाओं की शक्ति और साम्राज्य के विस्तार के साथ साहित्य और कला का भी विकास हुआ। गुप्त राजाओं ने बौद्ध धर्म के लिए किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई, परन्तु कलाकार ने बौद्ध धर्म के महायान और हीनयान सम्प्रदायों के आपसी झगड़ों के कारण बौद्ध धर्म को बहुत हानि पहुँची।
कपिलवस्तु में एक स्थान पर एक पवित्र धारणा का अंकन था, जिसमें बुद्ध स्वेत गज / की पीठ पर बैठे अपनी माँ के गर्भ में प्रवेश करते अंकित किए गए थे।
चित्रकला के कुछ प्रमाण मुसलमानों के आक्रमणों से उत्पन्न बर्बादी के कारण पूरी तरह नष्ट हो गए हैं।
कुछ चित्र जो कठोर चट्टानों के ऊपर बने थे वह नष्ट नहीं हो सके।
अजन्ता के कुछ चित्रों को लकड़ी के चौखटे की चौहदी बनाकर उसको पलस्तर से भरकर धरातल तैयार करके भी बनाया गया है। इस प्रकार की प्रथा अन्य स्थानों पर भी प्रचलित रही होगी, परन्तु लकड़ी के नष्ट हो जाने से चित्र नष्ट हो गए होंगे।
इन सभी उदाहरणों से प्रतीत होता है कि उस समय के कलाकार अच्छे भवन विशेषज्ञ और अच्छे कलाकार थे, जो कि दिव्य शक्तियों से सम्पन्न थे।
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